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Book Summary
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Annotated Matter The focus of the book is on article 368 which relates to the amendment procedure, its form, scope and limitation. It includes a brief legislative history of the legislation enacted till August 1994. इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए कि हमारा संविधान, अपने अधिनियम काल के सामाजिक-आर्थिक तत्वों की देन है, हमारे संविधान निर्माताओं ने संविधान के अनुच्छेद 368 के अन्तर्गत लोगों की आवश्यकताओं और आकांक्षाओं के अनुरूप इसमें संशोधन करने के उद्देश्य में संसद को शक्तियां प्रदान की हैं। 1950 में संविधान अंगीकृत किए जाने के समय से संविधान में संशोधन की यह प्रक्रिया ‘‘सुरक्षा-वाल्व’’ के रूप में कार्य कर रही है और शान्ति तथा प्रगति की आवश्यकताओं में सामंजस्य स्थापित करने में सहायक रही है। यह पुस्तक भारत के संविधान में संशोधन करने की प्रक्रिया के स्वरूप, विस्तार-क्षेत्रा और कार्यकरण पर एक यथेष्ठ दस्तावेजी अध्ययन है। इसमें अगस्त, 1994 तक अधिनियमित प्रत्येक संविधान संशोधन अधिनियमों का संक्षिप्त विधायी इतिहास और सारंाश सम्मिलित किया गया है। इस अध्ययन में उन विधेयकों का संक्षिप्त विधायी इतिहास भी सम्मिलित किया गया है जो पुनः स्थापित किये जाने के बाद या तो व्यपगत हो गये थे या वापस ले लिए गए थे, निराकृत कर दिये गए थे अथवा अस्वीकृत हो गये थे। इन अधिनियमों और विधेयकों का पूर्ण पाठ भी अनुबन्ध में उदृत किया गया है। दो पृथक अनुबंधों में विभिन्न संशोधन अधिनियमों द्वारा संविधान के संशोधित उपबंधों और पुनः स्थापित किये गये संविधान संशोध्न विधेयकों के साथ-साथ पारित किये गये संविधान संशोधन अधिनियमों की संख्या और रजिस्टर से हटाये गये, व्यपगत हुए, वापस लिए गये अथवा अस्वीकृत हुए विधेयकों की स्थिति का विवरण दर्शाया गया है। यह आशा की जाती है कि यह पुस्तक न केवल संसदविदों के लिए अपितु संविधानिक अध्ययनों के सभी जिज्ञासुओं के लिए उपयोगी सिद्ध होगी।
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