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Book Summary
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'चिदविलास' की माला में पिरोई गयी कविताओं में सात शतक प्रधान हैं l इनमें तीन शतक 1. विन्ध्यवासिनी, 2. उग्रतारा, 3. नवयोगिवन-सिद्धविद्यापीठ भारत के महासिद्धपीठों की आध्यात्मिक उत्कर्ष का परिचय कराती हैं l सिद्धपीठों की सर्वहितैषी ऊर्जा तपस्वियों, योगियों की तपः शक्ति से निर्मित अक्षय आध्यात्मिक श्रोत हैं जो आज भी श्रंद्धालुओं के अन्तःकरण को निर्मल कर पराभक्ति में उपनीत करने हेतु सहज उपलब्ध है l इन सिद्धपीठों की प्रतिक्षण बढ़ने वाली आध्यात्मिक ऊर्जा से असंख्य श्रंद्धालु यात्री अपने जीवन को सँवारने में समर्थ हुए हैं l सिद्धपीठों के रजकरणो से सुस्पर्श पाकर मन की निर्मलता, वाणी में सत्य एवं कर्म में निष्कामता सुलभ है जिससे श्रंद्धालु अध्यात्म को भौतिक जीवन से जोड़े सम्पूर्ण जीवन को योग का अर्थ देकर मनुष्य होने का अर्थ अपने जीवन में प्रकट कर सकते हैं l चतुर्थ शतक एकमेव श्रीगुरुतत्त्व की महत्ता का वर्णन है जिसे उपनिषद महा वाक्यों में 'एकमेवाद्वितीयं' संज्ञा से सम्बोधित किया गया है l वह परमात्मा वहिगुरु, वही सबकुछ सर्वत्र, सर्वकालिक है l पच्चम शतक भक्तशिरोमणि 'सर्व संकटमोचन', 'महामना हनुमान ' के ईश्वरार्पित जीवन के महत्व का परिचय कराती है l षष्टम 'विचार-शत ' शतक मानव जीवन के महत्व से जुड़े तथा उपयोगी विचारों को पाठक के सम्मुख रखती है जिससे पाठक जीवन यात्रा में भारहीन पाथेयरुप विचार से अवसरोचित लाभ ले सकते हैं l सप्तम शतक 'परम् आश्रय आत्मा' शीर्षक के औचित्य को पाठक के सामने रखती है l इन सात शतकों के अतिरिक्त जिन कविताओं को चिदविलास माला में पिरोई गई है वे सब भी एकात्मभाव में जीवन जीने की कला का दिग्दर्शन कराती है l इस माला को धारण करने वाले पाठक भागवत स्मरण से विमुख नहीं होंगे l चिदविलास में हम देख सकते है - - भारत के महाशक्तिपीठों की असीमित आध्यात्मिक ऊर्जा श्रोत संकेत
- तीर्थ क्षेत्रो में भरपूर आत्मीय व्यवहार, चैतन्य प्रकाश,
- 'आत्मवत सर्वभूतेषु' की व्यावहारिक शिक्षा
- परहितैषी योगियों की ज्ञानवर्षा
- जीवन यात्रा में स्मरणीय 'विचार-शत' की प्रेरणास्पद सूक्तियाँ
- मनोहलादकरी लघु कविताएँ
- बारम्बार पढ़ने की जीवंत उत्कण्ठा
- तरुण से दीर्धायुवर्ग में मन-तोष एवं चित्त की एकाग्रता हेतु सहायक
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Book Content
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सद्गुरु विन्ध्यवासिनी उग्रतारा नवयोगिवन सिद्धविघापीठ महामना हनुमान गंगा गीत अद्वितीय गोविन्द की अभिनय कला परमात्मा की ओर नमोस्तु ते रे मन ! मूढ़ ! ध्यान- शिव करले अभिलाषा 'जय माँ तारा ' तारे ! दुहु पद कमल वसाले जगन्मातु तारे आश गुरु की अर्चना कर समाचार क्षमापन "कैलाश गुरु" जय गुरु प्रेमियों के पंख जोड़ दृश्यगत गुरुवर सत भले मेरु की मणि ज्योति मुख माधुर्य रस गंगा वहे पुरुषार्थ साधन कर्म हो नियन्ता स्वामी हे बटुक भैरव नवल चित ! कल्पवृक्ष कलाप देगा नचा माँ ! हाथ तेरे हूँ जाग हे गणपति भैरव चरण में बंद पट ढक ले माँ प्रभुद्वार महामाया हम न भूलें हे प्रभो ! मल पाक परम् आश्रम आत्मा विचार-शत भगवन्मयी लीला अज्ञानग्रन्थि खुलजाये संसार का सच 'सवै भूमि गोपाल की ' ज्ञानाभ्यास सम प्रकृति देवी परा मानसाष्टक युग-चक्र निर्द्वन्द्व में आनन्द ही आनन्द कलानिधि, मुरलीधर धनश्याम ! बच्चा है भगवान उनको शत नमन कच्छप संवाद शुभ ही शुभ है जग संधान 'दैव इच्छा ही प्रबल है '
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